Bangladesh Protest: क्या भारत ने लापरवाही से खोया बंगलादेश?

Sheikh Haseena Resignation

Bangladesh Protest  में जो हुआ भारत कि दृष्टि से अच्छा नहीं हुआ। Sheikh Haseena के रूप में भारत का एक अच्छा दोस्त बांग्लादेश में था और Sheikh Haseena Resignation  से बांग्लादेश में भारत के हितो को गहरी चोट पहुंची है। भारत बांग्लादेश में चीनी प्रभाव को वहां कर पाने कि स्थिति में नहीं है।

Bangladesh Protest की जीत हुई और शेख हसीना को इस्तीफा देना पड़ा। उन्हें देश छोड़ कर भारत में शरण लेनी पड़ी है और बांग्लादेश की सत्ता का नियंत्रण फिलहाल सेना के हाथ में है।

Bangladesh Protest: विवरण

यह उस घटनाक्रम का पाटक्षेप है जो जुलाई में फ्रीडम फाइटर कोटा के कोर्ट द्वारा बहाल किये जाने के बाद शुरू हुआ था। इस सारे घटनाक्रम में जो एक सबसे महत्वपूर्ण बात भारत के लिए है वो है भारत विरोधी सेंटीमेंट्स का आंदोलन में होना और शेख मुजीबुर रेहमान की प्रतिमाओं का तोडा जाना। शेख मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश की पाकिस्तान से स्वतंत्रता के हीरो रहे हैं और बांग्लादेश की सबसे सम्मानजनक हस्तियों में उनका नाम शुमार है। वे शेख हसीना के पिता भी हैं।

बांग्लादेश में भारत के राजदूत रहे हर्षवर्धन का कहना है की इस आंदोलन में बाहरी ताकतों की मौजूदगी से इंकार नहीं किया जा सकता। दरअसल यह सोचने वाली बात है की क्या वाक़ई स्टूडेंट प्रोटेस्ट्स इतने बड़े बन गए की उन्होंने बांग्लादेश में तख्ता पलट कर दिया? या वाक़ई बाहरी ताकतों के इस आंदोलन में शामिल होने का अंदेशा सही है।

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Bangladesh Protest: पृष्ठभूमि:

इस बारे में जानने से पहले हमे जाना होगा कुछ समय पीछे जब शेख हसीना चीन दौरे पर गयी थी। खबर आयी थी की शेख हसीना नाराज़ हो कर दौरा बीच में छोड़ कर वापस आ गयी हैं। हालांकि कारण सरकार की तरफ से बताया गया था देश में नाजुक हालत होने का क्योंकि तब यह आंदोलन हिंसक होने लगा था। लेकिन भारतीय सूत्रों का कहना था की यह एक बेहद असामान्य बात है जब कोई देश का हेड किसी देश का दौरा बीच में छोड़ कर वापस लौट आये। परदे के पीछे कारण बताया जा रहा था की चीन ने आर्थिक मदद का वायदा पूरा नहीं किया।

भारतीय अंदेशे:

लेकिन चीन ने ऐसा क्यों किया? क्या इसके पीछे शेख हसीना की तीस्ता प्रोजेक्ट भारत से पूरा करवाने की इच्छा थी? गौरतलब है की तीस्ता भारत और चीन दोनों के लिए स्ट्रैटिजीकली बेहद जरुरी है। चीन का तीस्ता प्रोजेक्ट में दखल भारत का दक्षिण पूर्वी एशिया में न केवल असर बल्कि पहुँच पर भी प्रतिकूल असर डालेगा। इसलिए चीन को रोकने के लिए भारत ने इस प्रोजेक्ट में 1 बिलियन डॉलर निवेश करने की इच्छा मई में हसीना की भारत यात्रा के दौरान जताई थी। लेकिन दूसरी तरफ चीन को भी इस प्रोजेक्ट की अहमियत मालुम है इसलिए चीन चाहता था की हसीना ये प्रोजेक्ट चीन को करने दें।

Bangladesh Protest: पाकिस्तान कि मौजूदगी

चीन के अलावा एक और बिंदु पर ध्यान देने की जरुरत है। वो है बांग्लादेश विपक्षी पार्टी में  जमायत- ऐ- इस्लामी पार्टी का होना। यह संगठन एक कट्टरवादी संगठन है और  बांग्लादेश में प्रतिबंधित है। यह एक पाकिस्तान परास्त संगठन है। खबरें है की बांग्लादेश उनरेस्ट में पाकिस्तान की भागीदारी इस संघठन के द्वारा है । यह भी खबरें हैं की इस संगठन से जुड़े कुछ छात्र संगठन पाकिस्तान की ISI के संपर्क में हैं। \

दूसरी तरफ सबसे बड़ी और प्रमुख विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनल पार्टी चीन की तरफ झुकाव रखती है जबकि शेख हसीना को भारत की तरफ झुकाव रखने वाला माना जाता है। शेख हसीना के भारत के साथ कूटनीतिक रिश्ते होने के साथ साथ भावनात्मक रिश्ते भी हैं क्योंकि 1975 में सेना द्वारा मुजीबुर्रहमान और परिवार के अन्य सदस्यों की हत्या के बाद उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के कहने पर भारत में ही शरण ली थी।

छात्र आंदोलन में जमीयत ऐ इस्लामी का होना, वह कोटा जो 1972 से चला आ रहा था अचानक ही इतना बड़ा हो जाना और आर्मी के अंदर से असंतोष के स्वर दूसरी और चीन का तीस्ता प्रोजेक्ट में शामिल होने पर जोर देना और शेख हसीना का चीन दौरा छोड़ कर वापस आ जाना काफी कुछ कहानी बयां करता है। लेकिन सवाल यह है की भारत ने इसे रोकने के लिए क्या किया?

Bangladesh Protest: भारत के लिए सवाल:

Bangladesh Protest पर भारत ने चुप्पी साधे रक्खी है और वह चुप्पी शेख हसीना के भारत के दरवाज़े पर आ खड़े होने के बाद भी नहीं टूटी है। जबकि इस घटनाक्रम में अगर किसी देश का सबसे बड़ा अहित है तो वह भारत है। न सिर्फ बांग्लादेश भारत की सीमा से सटा हुआ है बल्कि भारत की बांग्लादेश की सीमायें बेहद खुली हैं।

ऐसे में भारत बांग्लादेश में प्रो पाकिस्तान सेंटीमेंट्स जो भारत के लिए बांग्लादेश के सेंटीमेंट्स की कीमत में है वहां नहीं कर सकता है। सवाल यह है कि जिस बांग्लादेश को इंदिरा गाँधी ने बनवाया पाकिस्तान को अपनी पूर्वी सीमा से हटाने के लिए, क्या उसी पाकिस्तान को मोदी सरकार कि निष्क्रियता ने फिर से पूर्वी सीमा पर ला बैठा दिया है? अगर एक देश के रूप में नहीं तोह एक पिट्ठू सरकार के रूप में ही सही। ऐसा नहीं है कि भारत को चेतावनियां नहीं मिली। अब देखना होगा कि भारत इस राजनितिक चुनौती से कैसे निबटता है।

 

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