Manipur Violence: कॉनराड संगमा के नेतृत्व वाली नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) ने मणिपुर की बीजेपी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है। पार्टी ने राज्य में लगातार हो रही जातीय हिंसा और बिगड़ती कानून-व्यवस्था के लिए मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह को जिम्मेदार ठहराया है।
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखे गए एक कड़े पत्र में एनपीपी ने मणिपुर सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि वह सामान्य स्थिति बहाल करने में पूरी तरह नाकाम रही है।
जेपी नड्डा को एनपीपी का पत्र और समर्थन वापसी का कारण
एनपीपी का यह कदम ऐसे समय आया है जब 2023 से जारी मेइती और कुकी समुदायों के बीच Manipur Violence में 250 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और करीब 60,000 लोग विस्थापित हो चुके हैं।
एनपीपी प्रमुख कॉनराड संगमा ने पत्र में लिखा,
“हमारा मानना है कि श्री एन. बिरेन सिंह के नेतृत्व में मणिपुर सरकार इस संकट को हल करने और सामान्य स्थिति बहाल करने में पूरी तरह विफल रही है। वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए, नेशनल पीपल्स पार्टी ने तुरंत प्रभाव से बिरेन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार से अपना समर्थन वापस लेने का निर्णय लिया है।”
इससे पहले, कुकी पीपल्स अलायंस ने भी पिछले साल बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन से अपना समर्थन वापस ले लिया था।
बीजेपी सरकार पर असर
हालांकि एनपीपी के समर्थन वापसी का सरकार पर तत्काल कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि बीजेपी के पास 60 सदस्यीय विधानसभा में 37 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत है। इसके अलावा, नागा पीपल्स फ्रंट (एनपीएफ), जनता दल (यूनाइटेड) और निर्दलीय विधायकों का भी उसे समर्थन हासिल है।
लेकिन एनपीपी का यह कदम सरकार पर दबाव को और बढ़ाता है, जो पहले से ही हिंसा को रोकने में असफल रहने के कारण आलोचना झेल रही है।
Manipur Violence और जातीय तनाव
मणिपुर इस समय दो हिस्सों में बंटा हुआ है — मेइती-बहुल इंफाल घाटी और कुकी-बहुल पहाड़ी इलाकों में। इन क्षेत्रों को सुरक्षा बलों द्वारा निगरानी वाले “नो मैन्स लैंड” से अलग किया गया है।
7 नवंबर को जिरीबाम जिले में एक एचमार समुदाय की स्कूल शिक्षिका के साथ बलात्कार, गोली मारने और जिंदा जलाने की घटना ने Manipur Violence को और भड़का दिया। इस हमले में 19 घर जला दिए गए और कई परिवारों को फिर से विस्थापित होना पड़ा।
इसके बाद, सीआरपीएफ के साथ हुई मुठभेड़ में 10 कुकी कथित “उग्रवादी” मारे गए, जबकि 6 मेइती समुदाय के लोगों को अगवा कर उनकी हत्या कर दी गई। इन घटनाओं ने जातीय संघर्ष को और गहरा कर दिया है।
राज्य सरकार की आलोचना
एनपीपी की समर्थन वापसी, मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह के नेतृत्व पर बढ़ते असंतोष को दर्शाती है। प्रदर्शनकारियों ने सरकार पर निष्क्रियता का आरोप लगाया है। कई इलाकों में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया गया है और इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गई हैं, लेकिन इससे हालात में कोई खास सुधार नहीं हुआ है।
केंद्र से हस्तक्षेप की मांग
Manipur Violence के बढ़ते दौर ने केंद्र सरकार से सख्त कदम उठाने की मांग तेज कर दी है। कई सामाजिक संगठनों और नेताओं ने केंद्र से मणिपुर की स्थिति को अपने नियंत्रण में लेने और अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात करने की अपील की है।
वहीं, मेइती और कुकी समुदायों के बीच अविश्वास और गहराता जा रहा है। दोनों समुदाय एक-दूसरे पर उग्रवादी समूहों के साथ सांठगांठ के आरोप लगा रहे हैं, जिससे शांति स्थापना और मुश्किल हो गई है।
एनपीपी का समर्थन वापस लेना मणिपुर की बिगड़ती स्थिति में एक बड़ा राजनीतिक संकेत है। हालांकि बीजेपी का बहुमत उसे सत्ता में बनाए रखेगा, लेकिन Manipur Violence से सरकार की साख और प्रशासनिक क्षमता पर गंभीर सवाल उठे हैं।
मणिपुर इस समय एक अनिश्चित दौर से गुजर रहा है। जातीय विभाजन और Manipur Violence के इस चक्र को रोकना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
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