Lateral Entry: मोदी सरकार ने नौकरशाही में Lateral Entry के लिए हाल ही में जारी किए गए विज्ञापन को वापस लेने के लिए संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) से अनुरोध किया है।
Lateral Entry वापस लेने का यह फैसला विपक्षी दलों की कड़ी आलोचना और सहयोगी चिराग पासवान के दबाव के बाद आया है। सरकार का यह U-Turn राजनीतिक रूप से संवेदनशील माहौल में प्रशासनिक सुधारों को लागू करने की चुनौतियों को उजागर करता है।
Lateral Entry: विवाद की शुरुआत
सरकार द्वारा केंद्र सरकार के वरिष्ठ पदों पर नई प्रतिभाओं और विशेषज्ञता को लाने के लिए शुरू की गई Lateral Entry पहल शुरुआत से ही बहस का विषय रही है। UPSC ने हाल ही में “प्रतिभाशाली और प्रेरित भारतीय नागरिकों” के लिए एक विज्ञापन जारी किया था, जिसमें 24 मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव पदों के लिए 45 पदों पर भर्ती की जानी थी। ये पद पारंपरिक सरकारी सेवा कैडर जैसे भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के बाहर के व्यक्तियों के लिए खुले थे।
हालांकि, सरकार ने इस कदम को निजी क्षेत्र से विशेष कौशल और अनुभव को सरकारी क्षेत्र में लाने का एक तरीका बताया, लेकिन इसने भारत के राजनितिक परिदृश्य में सामाजिक न्याय और संविधान में निहित आरक्षण के सिद्धांतों के संदर्भ में गंभीर बहस छेड़ दी।
Lateral Entry: विपक्ष और सहयोगी प्रतिक्रिया
Lateral Entry नीति का विपक्षी नेताओं, विशेषकर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी द्वारा कड़ा विरोध किया गया। उन्होंने इस प्रक्रिया की आलोचना “दलितों पर हमला” के रूप में की, और कहा कि यह सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षण प्रावधानों को कमजोर करता है। गांधी की टिप्पणी ने अन्य विपक्षी दलों के बीच भी इस मुद्दे को लेकर व्यापक बहस को जन्म दिया।
Lateral entry is an attack on Dalits, OBCs and Adivasis.
BJP’s distorted version of Ram Rajya seeks to destroy the Constitution and snatch reservations from Bahujans.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 19, 2024
हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया खुद सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के भीतर से आई। भाजपा के सहयोगी और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान ने लेटरल एंट्री नीति पर गंभीर आपत्ति जताई। पासवान ने इस बात पर जोर दिया कि सभी सरकारी नियुक्तियों में आरक्षण प्रावधानों का पालन किया जाना चाहिए, और उन्होंने बताया कि विज्ञापित पदों में ऐसे प्रावधानों की अनुपस्थिति एक गंभीर चिंता का विषय है।
पासवान के सार्वजनिक बयानों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा अन्य सरकारी अधिकारियों के साथ उनकी निजी चर्चाओं ने सरकार के Lateral Entry विज्ञापन को वापस लेने के फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पासवान ने कहा, “जब से लेटरल एंट्री का मुद्दा मेरी जानकारी में आया, मैंने इसे विभिन्न स्थानों पर संबंधित अधिकारियों के समक्ष उठाया। उन्होंने सरकार के इस फैसले पर अपनी संतुष्टि व्यक्त की।
Lateral Entry: सरकार की प्रतिक्रिया
बढ़ती आलोचना के जवाब में, केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC अध्यक्ष प्रीति सुदान को एक पत्र लिखकर Lateral Entry भर्ती के लिए जारी विज्ञापन को रद्द करने का आग्रह किया। सिंह के पत्र में, प्रधानमंत्री मोदी के निर्देशों का हवाला देते हुए, संविधान में निहित सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों के साथ Lateral Entry प्रक्रिया के एलाइनमेंट की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
सिंह ने स्वीकार किया कि जबकि पहले Lateral एंट्री की बातें अक्सर अनौपचारिक रूप से की जाती थीं, वर्तमान सरकार के प्रयास इस प्रक्रिया को पारदर्शी, संस्थागत रूप से संचालित और खुला बनाने के लिए हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि विज्ञापित पदों को विशेषीकृत माना गया था और इनमें आरक्षण का प्रावधान नहीं था, इसलिए इसकी समीक्षा की आवश्यकता है।
सिंह ने लिखा, “प्रधानमंत्री का दृढ़ विश्वास है कि Lateral Entry की प्रक्रिया को हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के साथ अलाइन किया जाना चाहिए,” उन्होंने यह भी कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि संविधान के तहत सामाजिक न्याय के प्रति जनादेश को बनाए रखा जाए ताकि हाशिए पर रहने वाले समुदायों के योग्य उम्मीदवारों को सरकारी सेवाओं में उनका उचित प्रतिनिधित्व मिल सके।
Lateral Entry: राजनीतिक परिणाम
Lateral Entry विज्ञापन को वापस लेने का निर्णय भारत में प्रशासनिक सुधारों को लागू करने में राजनीतिक संवेदनशीलता को उजागर करता है। चार राज्यों में विधानसभा चुनावों के करीब आते ही विपक्ष ने Lateral Entry मुद्दे को दोनों हाथो से पकड़ लिया और मुखर आलोचना चालु कर दी। सरकार के भीतर के सूत्रों का कहना है कि आगामी चुनावों के मद्देनज़र विपक्ष को कोई मुद्दा न देने की सोच के तहत सरकार ने इस पहल पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया हो सकता है।
राहुल गांधी की आलोचना और गांधी जयंती (अर्थात्, 2 अक्टूबर) पर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव द्वारा विरोध प्रदर्शन के आह्वान ने राजनीतिक माहौल को और गरमा दिया। विज्ञापन को वापस लेने का सरकार का निर्णय इसे चुनावों से पहले विपक्ष को एक मजबूत मुद्दा न देने की रणनीतिक चाल के रूप में देखा जा सकता है।
मोदी सरकार का Lateral Entry पर यू-टर्न इस बात को रेखांकित करता है कि राजनीतिक रूप से संवेदनशील माहौल में सुधारों को लागू करने की जटिलताएँ क्या होती हैं। हालांकि इस पहल का उद्देश्य नौकरशाही में नई प्रतिभाओं को लाना था, लेकिन विपक्षी दलों और सहयोगियों की कड़ी प्रतिक्रिया इस बात को उजागर करती है कि पालिसी निर्णयों में सामाजिक न्याय और समानता पर विचार कितना महत्वपूर्ण है।
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