American Ambassador का कड़ा संदेश: संकट के समय रणनीतिक स्वायत्तता नहीं 

American Ambassador

नयी दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूस दौरे के कुछ दिनों बाद ही, अमेरिका ने इस दौरे को लेकर अपनी निराशा जाहिर की है। American Ambassador एरिक गार्सेटी ने टिप्पणी की कि भारत-अमेरिका संबंधों को हल्के में नहीं लेना चाहिए और “संघर्ष के समय” में रणनीतिक स्वायत्तता जैसी कोई चीज नहीं होती। 

अमेरिकी मीडिया के अनुसार, अमेरिकी अधिकारियों ने मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात के समय को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की है। यह मुलाकात नाटो शिखर सम्मेलन के आयोजन से ठीक पहले हुई थी, जो वाशिंगटन डी.सी. में हो रहा था। 

American Ambassador एरिक गार्सेटी की स्पष्ट चेतावनी 

American Ambassador एरिक गार्सेटी ने दिल्ली में एक रक्षा सम्मेलन में कहा, “मैं समझता हूं कि भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को पसंद करता है। लेकिन संघर्ष के समय में रणनीतिक स्वायत्तता जैसी कोई चीज नहीं होती। हमें संकट के क्षणों में एक-दूसरे को जानना होगा और यह विश्वास होना चाहिए कि हम भरोसेमंद मित्र हैं।” 

उन्होंने आगे कहा, “इस रिश्ते को हल्के में न लें। हर दिन इसका आनंद लें, इसमें कुछ योगदान दें… यह सुनिश्चित करें कि हम एक-दूसरे को सट्टा नहीं समझें, बल्कि मजबूत शक्तियों के रूप में देखें।” 

युद्ध के विरुद्ध सैद्धांतिक समर्थन 

American Ambassador गार्सेटी ने जोर देकर कहा कि दोनों देशों को युद्ध के खिलाफ “सैद्धांतिक रूप से” खड़ा होना चाहिए। मोदी के तीसरी बार सत्ता में आने के बाद यह उनका पहला आधिकारिक द्विपक्षीय दौरा था, जो रूस और ऑस्ट्रिया की यात्रा से जुड़ा हुआ था। ऑस्ट्रिया यूरोपीय संघ का एक सदस्य देश है, लेकिन नाटो का हिस्सा नहीं है। 

वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार, अमेरिकी उप विदेश मंत्री कर्ट कैंपबेल ने भारतीय विदेश सचिव विनय क्वात्रा से बातचीत की थी और इस यात्रा के समय पर चिंता जताई थी। उन्होंने कहा कि नाटो के 75 साल पूरे होने के अवसर पर हो रहे शिखर सम्मेलन के दौरान इस यात्रा का समय “दृष्टिगत” रूप से जटिल हो सकता है। 

भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की परीक्षा 

भारत की नीति को “रणनीतिक स्वायत्तता” के रूप में देखा गया है, खासकर पश्चिमी शक्तियों द्वारा भारत को आकर्षित करने की कोशिशों के बीच। हालांकि, भारत ने लंबे समय से मास्को के साथ रक्षा क्षेत्र में साझेदारी बनाए रखी है और यूक्रेन की स्थिति के बाद से ऊर्जा क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण साझेदारी की है। 

American Ambassador  गार्सेटी ने कहा, “हमें सिर्फ शांति के लिए खड़ा नहीं होना चाहिए, बल्कि उन लोगों के खिलाफ ठोस कदम उठाने चाहिए जो शांति के नियमों का पालन नहीं करते हैं।” उन्होंने अमेरिकी हथियारों की खरीद बढ़ाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। 

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भारत-अमेरिका संबंधों की गहराई 

American Ambassador ने कहा, “अमेरिका और भारत का संबंध जितना व्यापक और गहरा कभी नहीं रहा, लेकिन यह अभी भी इतना गहरा नहीं है कि इसे हल्के में लिया जा सके।” उन्होंने कहा कि अमेरिकी राजनेताओं के बीच नागरिक अधिकारों के मुद्दों पर चिंता है, जिन्हें संबोधित करने की आवश्यकता है। 

उन्होंने कहा, “संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत को यह समझना होगा कि हम एक साथ खड़े हैं।” 

अमेरिका की नाराज़गी इस बात पर है की यह मुलाक़ात उस समय हुई जब नाटो अपनी ७५वी वर्षगाँठ मना रहा था।  सूत्रों के अनुसार भारत से ये यात्रा उस समय टालने की गुजारिश की गयी थी जब नाटो का ७५वी वर्षगाँठ का शिखर सम्मलेन चल रहा था।  लेकिन वेस्ट की इस मांग को नज़रअंदाज़ करते हुए भारत ने इस यात्रा को नहीं टाला।   

भारत की रूस यात्रा की आलोचना यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलिंस्की ने भी की है।  अपनी तीव्र आलोचना को उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफार्म X पर पोस्ट किया।  उन्होंने ये आलोचना की क्योंकि जिस दिन मोदी रूस पहुंचे उस दिन ही यूक्रेन के एक बच्चो के अस्पताल पर मिसाइल से हमला हुआ जिस का आरोप यूक्रेन ने रूस पर लगाया है।   

निष्कर्ष 

अमेरिका और भारत के बीच संबंध हाल के वर्षों में द्विपक्षीय समर्थन का सामना कर रहे हैं, लेकिन मोदी की रूस यात्रा ने इस रिश्ते को नई चुनौती दी है। American Ambassador की टिप्पणी इस बात को उजागर करती है कि संकट के समय में रणनीतिक स्वायत्तता का कोई स्थान नहीं होता और दोनों देशों को विश्वास और सहयोग के साथ आगे बढ़ना चाहिए। 

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