Alimony to Muslim Women: आज भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा कि एक मुस्लिम महिला अपने पति से तलाक के बाद धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकती है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मुस्लिम पुरुष द्वारा दाखिल की गई याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया।
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Alimony to Muslim Women: न्यायालय की टिप्पणी
न्यायालय ने कहा, “धारा 125 सीआरपीसी सभी महिलाओं पर लागू होती है, न केवल विवाहित महिलाओं पर। यह अधिकार धर्म की सीमाओं को पार कर जाता है और सभी विवाहित महिलाओं के लिए आर्थिक सुरक्षा और लैंगिक समानता के सिद्धांत को मजबूत करता है।”
मोहम्मद अब्दुल समद नामक व्यक्ति ने एक पारिवारिक न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उसे अपनी तलाकशुदा पत्नी को प्रति माह 20,000 रुपये का भरण-पोषण भत्ता देने का निर्देश दिया गया था। उच्च न्यायालय ने भत्ता राशि को संशोधित कर 10,000 रुपये कर दिया था, लेकिन आदेश को बरकरार रखा था।

Alimony to Muslim Women: याचिकाकर्ता के तर्क
याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील एस वसीम ए कादरी ने तर्क दिया कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों की सुरक्षा) अधिनियम, 1986 (“अधिनियम”) एक विशेष कानून है और धारा 125 सीआरपीसी की तुलना में अधिक प्रावधान करता है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि विशेष कानून (अधिनियम) को सामान्य कानून (सीआरपीसी) पर प्राथमिकता मिलनी चाहिए।
Alimony to Muslim Women: न्यायालय के विचार
न्यायमूर्ति मसीह ने कहा, “1986 का अधिनियम 125 सीआरपीसी को निरस्त नहीं करता है। यह व्यक्ति की पसंद पर निर्भर करता है कि वह किस अधिनियम के तहत आवेदन करना चाहता है।” न्यायमूर्ति नागरत्ना ने भी इस पर सहमति जताते हुए कहा कि 1986 के कानून में ऐसा कुछ भी नहीं है जो एक उपाय को दूसरे के पक्ष में बाधित करता हो।
Alimony to Muslim Women: एनसीडब्ल्यू की प्रतिक्रिया
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने इस फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा, “यह निर्णय लैंगिक समानता और न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”यह ऐतिहासिक फैसला महिलाओं के अधिकारों को सुदृढ़ करता है और समाज में महिलाओं की स्थिति को और मजबूत करेगा।
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