एक तरफ जहाँ भारत 1 सितम्बर से National Nutrition Week 2024 मनाने के लिए तैयार हो रहा है वहीँ ‘The Lancet Global Health’ जर्नल में प्रकाशित एक नई रिपोर्ट से एक चिंताजनक तथ्य सामने आया है कि भारत में हर उम्र के लोग, चाहे वे पुरुष हों या महिलाएं, जरूरी माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जैसे आयरन, कैल्शियम और फोलेट का पर्याप्त सेवन नहीं कर रहे हैं।
‘द लांसेट ग्लोबल हेल्थ’ जर्नल का यह अध्ययन अपनी तरह का पहला है जो 185 देशों में 15 माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी का आकलन केवल खानपान की आदतों के आधार पर करता है, बिना सप्लीमेंट्स के सेवन को ध्यान में रखे। अध्ययन के अनुसार, लगभग 70% वैश्विक आबादी, यानी 5 अरब से अधिक लोग, आयोडीन, विटामिन ई और कैल्शियम का पर्याप्त सेवन नहीं कर रहे हैं।
The Lancet Report: भारत में माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी
भारत के संदर्भ में National Nutrition Week 2024 के इतने नजदीक इस अध्ययन ने यह भी खुलासा किया कि पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं आयोडीन की कमी से जूझ रही हैं, जबकि अधिक पुरुषों में जिंक और मैग्नीशियम की कमी पाई गई। यह अध्ययन Harvard University, USA समेत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की टीम द्वारा किया गया था। शोधकर्ताओं ने पाया कि किसी भी देश और उम्र वर्ग में, महिलाओं में आयोडीन, विटामिन बी12 और आयरन की कमी पुरुषों की तुलना में अधिक थी। वहीं दूसरी ओर, पुरुषों में मैग्नीशियम, विटामिन बी6, जिंक और विटामिन सी की कमी महिलाओं की तुलना में अधिक पाई गई।
The Lancet Report: ग्लोबल डाइटरी डाटाबेस का उपयोग
The Lancet Report में, शोधकर्ताओं ने ग्लोबल डाइटरी डाटाबेस से प्राप्त सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों का उपयोग करके, 99.3% वैश्विक आबादी के लिए अपर्याप्त पोषक तत्वों के सेवन का आकलन किया। अध्ययन में पाया गया कि 10-30 वर्ष की आयु के व्यक्तियों में, विशेषकर दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और सब-सहारन अफ्रीका में, कैल्शियम के अपर्याप्त सेवन का सबसे अधिक खतरा है। यह अध्ययन उन जगहों की पहचान करने में मदद कर सकता है जहाँ सरकारों या विभिन्न संस्थाओ को आहार संबंधी पॉलिसीस बनाने कि जरुरत है ताकि लोगो को सही मात्रा में पोषक तत्त्व उनके भोजन से मिल सकें।
The Lancet Report के नतीजों का विश्लेषण और सुझाव
The Lancet Report में यह भी बताया गया कि क्योंकि इसमें फोर्टिफाइड फूड्स या सप्लीमेंट्स के सेवन को शामिल नहीं किया गया है, इसलिए परिणाम कुछ प्रमुख पोषक तत्वों की कमी के मामलों में अतिशयोक्ति हो सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां लोग अधिक मात्रा में फोर्टिफाइड फूड्स और सप्लीमेंट्स का सेवन करते हैं।
यह अध्ययन भारत में National Nutrition Week 2024 से ठीक पहले प्रकाशित हुआ है, जो हर साल 1 से 7 सितंबर तक मनाया जाता है। इसका उद्देश्य पोषण के प्रति जागरूकता बढ़ाना और स्वस्थ आहार को प्रोत्साहित करना है। इस सप्ताह का आयोजन 1982 से हर साल किया जा रहा है।
भारत में आहार की विविधता की कमी
शोध की प्रतिक्रिया में, HaystackAnalytics, मुंबई की ग्रोथ और साइंटिफिक सपोर्ट प्रमुख, जेनेटिसिस्ट अपर्णा भानुशाली ने कहा कि यह अध्ययन न केवल आहार में विविधता की कमी को उजागर करता है, बल्कि पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों तक पहुंच में गहरे सामाजिक और आर्थिक बाधाओं को भी दर्शाता है। “वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, ये कमियां उन आहारों में निहित हैं, जो चावल और गेहूं जैसे मुख्य अनाज पर आधारित हैं, जिनमें ये आवश्यक पोषक तत्व नहीं होते हैं,” भानुशाली ने PTI को बताया।
भानुशाली ने यह भी बताया कि भारतीय आहार में पौधों से प्राप्त होने वाले पोषक तत्वों की बायोअवेलेबिलिटी, यानी उनके अवशोषण की क्षमता, अक्सर ऑक्सलेट्स की उपस्थिति से कम हो जाती है, जो भारत में प्रचलित शाकाहारी आहार में सामान्य रूप से पाए जाते हैं।

क्षेत्रीय और सामाजिक-आर्थिक कारकों का प्रभाव
भानुशाली ने बताया, “भारतीय आहार में आयरन की पर्याप्त मात्रा होने के बावजूद, ज्यादातर आहार में लगभग 26 मिलीग्राम आयरन होता है, लेकिन शरीर द्वारा इसके अपने अंदर सोखने कि शक्ति काफी कम है, जो 1-5% के बीच होता है। यह कम बायोअवेलेबिलिटी (या अवशोषण) मुख्य रूप से गैर-हीम आयरन की उपस्थिति के कारण होती है, जो कि सीरियल-पल्स आधारित आहारों में पाया जाता है, और यह लाल मांस में पाए जाने वाले हीम आयरन की तुलना में कम प्रभावी ढंग से शरीर द्वारा अंदर लिया जाता है।”
The Lancet Report द्वारा उजागर की गई आहार संबंधी खामियों को दूर करने के लिए सप्लीमेंट्स National Nutrition Week 2024 और व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियानों का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “प्रिसिजन न्यूट्रिशन भारत में माइक्रोन्यूट्रिएंट की कमियों को दूर करने के लिए एक परिवर्तनकारी समाधान प्रदान करता है, जो व्यक्तिगत और समूह स्तर पर विस्तृत डेटा का उपयोग करके आहार संबंधी सिफारिशों को अनुकूलित करता है।”
प्रिसिजन न्यूट्रिशन उस सिद्धांत पर आधारित है कि लोग पोषण के प्रति अलग-अलग प्रतिक्रिया करते हैं, जो उनके जेनेटिक, बायोकेमिकल और पर्यावरणीय कारकों पर निर्भर करता है। इसलिए, यह व्यक्तिगत स्तर पर आहार सिफारिशों को अनुकूलित करने का एक तरीका प्रदान कर सकता है और अधिक जानकारीपूर्ण सलाह दे सकता है। भानुशाली ने यह भी कहा कि, “जबकि बड़े पैमाने पर व्यक्तिगतकरण जटिल और महंगा है, समान प्रोफाइल वाले व्यक्तियों को समूहबद्ध करना एक व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रदान करता है।”
The Lancet Report के निष्कर्ष भारत में पोषण और स्वास्थ्य में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी के रूप में काम करते हैं। इसके माध्यम से, सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति निर्माताओं और पेशेवरों को उन समूहों की पहचान करने में मदद मिल सकती है, जिन्हें विशेष रूप से आहार हस्तक्षेप की आवश्यकता है, और इसे संबोधित करने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों को अनुकूलित किया जा सकता है।
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