Pooja Khedkar के खिलाफ UPSC ने आखिरकार एक्शन लिया और उनको आजीवन UPSC की किसी भी परीक्षा में बैठने से प्रतिबंधित कर दिया। लेकिन इसके साथ ही UPSC ने स्पष्ट किया कि उनके पास न तो कोई तरीका है और न ही अधिकार क्षेत्र कि वे अभियर्थियों द्वारा दिए गए सर्टिफिकेट्स कि सत्यता कि जांच कर सकें। गौरतलब है कि पूजा खेड़कर मामला उठने के बाद और भी काफी सारे ऑफिसर्स के सर्टिफिकेट्स खासकर विकलांगता सर्टिफिकेट्स के ऊपर सोशल मीडिया में सवाल उठाये गए हैं।
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Toggleभारत के शीर्ष सिविल सेवकों के चयन के लिए जिम्मेदार प्रमुख संस्थान, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC), पर पूजा खेड़कर मामले में चूक के उजागर होने के बाद से सबकी नज़रें टिकी हुई हैं। आईएएस प्रशिक्षु पूजा खेडकर का चयन तो रद्द कर दिया गया है क्योंकि यह पता चला है कि उन्होंने अपनी पहचान बदलकर और झूठे दस्तावेज़ प्रस्तुत करके सिविल सेवा परीक्षा (CSE) के लिए अनुमत प्रयासों से अधिक प्रयास किए थे। लेकिन इस मामले ने यूपीएससी चयन प्रक्रिया के दौरान उम्मीदवारों द्वारा दिए गए सर्टिफिकेट्स की प्रमाणिकता सत्यापित करने की क्षमता में एक महत्वपूर्ण खामी को भी उजागर किया है।
Pooja Khedkar घोटाले का खुलासा
34 वर्षीय पूजा खेडकर ने CSE-2022 में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और बेंचमार्क विकलांगता (PwBD) कोटा के तहत ऑल इंडिया रैंक (AIR) 821 हासिल की थी। हालांकि, यह पाया गया कि उन्होंने परीक्षा नियमों के तहत अनुमत प्रयासों से अधिक प्रयास किए थे। 18 जुलाई, 2024 को यूपीएससी ने खेडकर को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें उन पर “अपनी पहचान बदलकर परीक्षा नियमों के तहत अनुमत सीमा से अधिक प्रयास करने का आरोप लगाया गया था।” हालांकि नोटिस का जवाब देने के लिए उनका समय बढ़ाया गया लेकिन खेडकर समय पर स्पष्टीकरण देने में असफल रहीं। इसके परिणामस्वरूप उनकी प्रोविजनल उम्मीदवारी रद्द कर दी गई है और उन्हें भविष्य की सभी यूपीएससी परीक्षाओं से जीवनभर के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है।
प्रमाणपत्र सत्यापन में UPSC की सीमित भूमिका
Pooja Khedkar की हरकतें काफी गंभीर थीं, लेकिन यह पता चला है की लोक सेवा आयोग भी इन धोखाधड़ी की घटनाओ को पकड़ पाने में विफल है। इस घटना का अधिक चिंताजनक पहलु यूपीएससी की कागजात वेरिफिकेशन में सीमित भूमिका का खुलासा है। यूपीएससी ने एक आधिकारिक बयान में स्पष्ट किया है कि वे केवल प्रमाणपत्रों की “प्रारंभिक जांच” करते है और आमतौर पर लोक सेवा आयोग उन कागजातों को प्रामाणिक मानता है जो किसी भी सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किए गए हों। आयोग ने आगे कहा कि उसके पास हर साल उम्मीदवारों द्वारा प्रस्तुत हजारों प्रमाणपत्रों की सत्यता की जांच करने का अधिकार या संसाधन नहीं है, यह जिम्मेदारी अन्य प्राधिकारियों पर है।
एक प्रणालीगत समस्या: व्यापक प्रभाव
Pooja Khedkar मामले ने यूपीएससी की परीक्षा प्रणाली में भी एक प्रणालीगत समस्या को उजागर किया है। आयोग ने बताया कि खेड़कर ने लोक सेवा आयोग द्वारा दिए गए प्रयासों से ज्यादा बार यह परीक्षा दी। आयोग ने बताया की ऐसा इसलिए संभव हो पाया क्योंकि खेड़कर ने अपना एवं अपने माता पिता का नाम बदल कर आवेदन किया जिससे उनके प्रयासों की संख्या में अनियमितताओं का पता नहीं लग पाया। खेडकर प्रकरण के बाद, यूपीएससी ने 2009 से 2023 के बीच CSE पास करने वाले 15,000 से अधिक उम्मीदवारों के डेटा की विस्तृत जांच की है और पाया है कि खेडकर के अलावा कोई अन्य उम्मीदवार CSE नियमों के तहत अनुमत प्रयासों से अधिक प्रयास करने का दोषी नहीं है।
कानूनी और नैतिक प्रभाव
खेडकर की अयोग्यता से संबंधित मामला केवल उनकी अयोग्यता तक सीमित नहीं रहा। दिल्ली पुलिस ने जून में उनके खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की, जिसमें फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी, विकलांगता अधिकार अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत शामिल हैं। जांच में खुलासा हुआ कि खेडकर ने एक झूठा विकलांगता प्रमाणपत्र और एक ओबीसी गैर-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया था, जबकि उनके परिवार के पास इतने संपत्ति थी कि वे इन लाभों के लिए अयोग्य थे।
UPSC: सुधार की आवश्यकता
Pooja Khedkar प्रकरण ने UPSC की परीक्षा प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता को उजागर किया है, विशेष रूप से उम्मीदवारों की प्रमाणिकता सत्यापित करने के संदर्भ में। यूपीएससी ने प्रमाणपत्रों की सत्यता जांचने में अपनी सीमाओं को स्वीकार किया है और अब यह जरूरी है कि एक मजबूत तंत्र स्थापित किया जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल पात्र उम्मीदवार ही इस प्रतिष्ठित परीक्षा में भाग लें।
यूपीएससी के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह दूसरे सरकारी महकमों के साथ मिलकर एक केंद्रीकृत सत्यापन प्रणाली बनाए, जो उम्मीदवारों की प्रमाणिकता को अधिक प्रभावी ढंग से जांच सके। इसके अलावा, यूपीएससी को उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि की विस्तृत जांच के लिए बेहतर तकनीक और संसाधनों में निवेश करने की आवश्यकता है।
पूजा खेड़कर प्रकरण ने यह तो साबित कर दिया की देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा प्रणाली खामियों से भरी पड़ी है लेकिन अभी तक इस बात का आश्वासन नहीं मिला है की पूजा कि अलावा कोई और अधिकारी इस तरह कि फ्रॉड का दोषी नहीं है। सोशल मीडिया की माने तो ऐसे अनेकोनेक अफसर है जो गलत सर्टिफिकेट्स का लाभ उठा कर अधिकारी बने हैं। लोक सेवा आयोग अपनी खामियां मान चुका है लेकिन क्या वह दूसरे उमीदवारो कि कागजात को वेरीफाई करेगा ताकि यदि कोई और भी दोषी हैं तो उनका पता लगाया जा सके?