Shrimant Dagdusheth Halwai: ‘दगड़ूसेठ गणपति मंदिर’ माहाराष्ट्र के सुंदर शहर पुणे में है। गणपति जी का ये मंदिर देश भर में प्रसिद्ध है। दूर-दूर से भक्त यहाँ दर्शन करने आते हैं। चलिए आज हम आपको इस मंदिर के कुछ रोचक तथ्य बताते हैं।
हिंदू धर्म में देवी देवताओं की पूजा की जाती है। इनमें से सबसे ज्यादा मान्यता भगवान गणेश की है। धार्मिक ग्रंथों में सबसे ज्यादा महत्त्व गणेश जी को दिया गया है। जब पूजा होती है तो सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। इतना ही नहीं, देशभर में गणपति के कई विशाल मंदिर हैं, जहां पूरे साल भक्त दर्शन करने जाते हैं। गणपति जी का एक विशाल मंदिर पुणे में है, जहाँ करोणों की भीड़ में भक्त दर्शन करने आते हैं।
वह मंदिर ‘श्रीमंत दगड़ूसेठ हलवाई गणपति मंदिर’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर माहाराष्ट्र के सुंदर शहर पुणे में स्तिथ है। वैसे तो पूरे साल में भक्त कभी भी किसी भी महीने में दर्शन करने के आ सकते हैं, मगर गणेश उत्सव के समय इस मंदिर में भक्तों की रौनक और आलीशान सजावट देखने को मिलती है।
Shrimant Dagdusheth Halwai: यह नाम कैसे पड़ा?
भगवान गणेश जी का यह मंदिर सबसे अलग है। सभी लोगों की यह जानने की जिज्ञासा रहती है कि आखिर भगवान गणेश को यहां दगड़ूसेठ हलवाई क्यों कहते हैं।
इस मंदिर का नाम ‘श्रीमंत दगड़ूसेठ हलवाई मंदिर’ कैसे पड़ा? दरअसल, दगड़ूसेठ नाम का एक प्रसिद्ध हलवाई था। श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई और उनकी पत्नी लक्ष्मीबाई पुणे में रहते थे और मिठाई के व्यापारी थे। श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। तभी से यह मंदिर ‘श्रीमंत दगड़ूसेठ हलवाई गणपति मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। इसी नाम से ही भक्तों ने इस मंदिर को पुकारना शुरू कर दिया था। उनकी मूल हलवाई की दुकान अभी भी पुणे में दत्त मंदिर के पास “दगडूशेठ हलवाई स्वीट्स” के नाम से मौजूद है।
Shrimant Dagdusheth Halwai: मंदिर का निर्माण कब हुआ?
ऐसा कहा जाता है कि दगड़ूसेठ हलवाई कलकत्ता से पुणे व्यापार करने आए थे। उन्होंने मिठाई का व्यापार शुरू किया था। उनकी पत्नी और बेटा भी साथ में आए थे। जिस समय वे पुणे मैं आये थे उस दौरान पुणे में प्लेग महामारी फैली हुई थी, जिसमें उनके बेटे की मृत्यु हो गयी थी।
इस प्लेग महामारी के चलते दगड़ूसेठ हलवाई ने अपने बेटे को खो दिया। बेटे की आत्मा की शांति के लिए दगड़ूसेठ हलवाई ने पंडित से बात की तो उन्होंने भगवान गणेश का मंदिर बनवाने की सलाह दी। पंडित जी की सलाह मानकर वर्ष 1893 में दगड़ूसेठ हलवाई ने एक भव्य गणपति मंदिर का निर्माण कराया और गणपति प्रतिमा स्थापित कराई । आज इस मंदिर को दगड़ूसेठ हलवाई के नाम से ही जाना जाता है। इसे दगड़ूसेठ का मंदिर भी कहते है। यह मंदिर देशभर में प्रसिद्ध है। पूरे साल इस मंदिर में भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है।
Shrimant Dagdusheth Halwai: दगडूसेठ गणपति मूर्तिं किसने बनाईं ?
दगडूसेठ की मूर्तिं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा स्थापित की गईं। यह मूर्तिं बाबूराव नाइक द्वारा सन् 1893 में बनाई गयी थी। ये गणेश प्रतिमा 2.2 मीटर ऊँची और 1 मीटर चौड़ी हैं इस मूर्तिं को 40 कि. ग्रा सोने से सजाया गया हैं। 2006 में मंदिर समीति ने चांदी की सुन्दर मूर्तिं का निर्माण कराया जो कि सदैव दर्शन के लियें रहती हैं।
Shrimant Dagdusheth Halwai: दगडूसेठ गणपति मंदिर क्यों प्रसिद्ध हैं ?
कहा जाता है कि लोकमान्य गंगाधर तिलक ने इसी मन्दिर से गणेश उत्सव की शुरुआत की थी जो कि आज तक इस उत्सव को लोग मनाते आ रहे हैं। यह उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। दगडूसेठ का मंदिर एक सनातनी मंदिर हैं जो कि भगवान श्रीगणेश गणपति को समर्पित हैं। हर साल लाखों तीर्थयात्री इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं और अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं। मंदिर के भक्तों में महाराष्ट्र की मशहूर हस्तियां भी शामिल हैं जो कि दस दिवसीय गणेश उत्सव में आती हैं।
Shrimant Dagdusheth Halwai: गणेश मूर्ति की बनावट
दगड़ूसेठ हलवाई गणपति मंदिर में भगवान गणेश की 7.5 फीट ऊंची और 4 फीट चौड़ी प्रतिमा रखी गई है। गणेश प्रतिमा के चेहरे पर 8 किलो सोने का काम किया गया है। इस प्रतिमा में गणपति के दोनों कान सोने के बने हैं। प्रतिमा के मुकुट का वेट 9 किलो से भी ज्यादा है। देश में मौजूद सभी गणेश प्रतिमाओं में से यह प्रतिमा बहुत सूंदर है। इस मंदिर में गणेश जी को सोने के आभूषणों से सजाया गया है।
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