Rishi Agastya एक वैदिक ॠषि थे। ये वशिष्ठ मुनि के भाई थे। इनका जन्म श्रावण शुक्ल पंचमी को काशी में हुआ था। आज वह स्थान अगस्त्यकुंड के नाम से प्रसिद्ध है। आगे की जानकारी के लिए पूरा पढ़ें।
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार पौराणिक कथाओं में ऋषि अगस्त्य का जन्म एक घड़े से हुआ है। बहुत प्रार्थना करने पर मित्र और वरुण देवता ने अपना तेज एक घड़े में स्थापित किया था। उसी से ऋषि वशिष्ठ के साथ ऋषि अगस्त्य की उत्पत्ति हुई थी। ये दोनों ही भाई भगवान शंकर के बहुत बड़े भक्त थे। Rishi Agastya को सप्तर्षियों में से एक माना जाता है।
देवताओं के अनुरोध पर वह काशी छोड़कर दक्षिण की यात्रा पर चले गए थे और बाद में वहीं पर बस गये थे। महर्षि अगस्त्य एक वैदिक ऋषि थे और राजा दशरथ के राजगुरु थे। इनकी गणना सप्तर्षियों में की जाती है। महर्षि अगस्त्य को मंत्रदृष्टा ऋषि भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने तपस्या काल में उन मंत्रों की शक्ति को देखा था। महर्षि अगस्त्य ने ही ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 165 सूक्त से 191 तक के सूक्तों को बताया था।
अगस्त्य के बारे में कहा जाता है कि एक बार इन्होंने अपनी मंत्र शक्ति से समुद्र का सारा जल पी लिया था। ऋषि अगस्त्य ने विंध्याचल पर्वत को झुका दिया था और मणिमती नगरी के इल्वल तथा वातापी नामक दुष्ट दैत्यों की शक्ति को नष्ट कर दिया था।
Rishi Agastya : महर्षि अगस्त्य का जन्म और परिवार
कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि अगस्त्य और महर्षि वशिष्ठ दोनों भाई हैं। दोनों ऋषियों का जन्म मित्र और वरुण देवताओं की शक्ति द्वारा हुआ था, जब वे उर्वशी को देखकर मोहित हो गए थे। उनके वीर्य से एक कलश में वशिष्ठ और अगस्त्य का जन्म हुआ। कहा जाता है कि मित्र और वरुण ने अपने वीर्य को एक कलश में डाल दिया, जिससे वशिष्ठ और अगस्त्य का जन्म हुआ। इस प्रकार, वशिष्ठ और अगस्त्य दोनों भाई-भाई हुए।
Rishi Agastya : महर्षि अगस्त्य की दक्षिण यात्रा
महर्षि अगस्त्य की “दक्षिण भारत की यात्रा” काफी महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक है। यह यात्रा न केवल भौगोलिक रूप से बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिकरूप से महत्वपूर्ण थी। देवताओं के अनुरोध पर वह काशी छोड़कर दक्षिण की यात्रा पर चले गए थे और बाद में वहीं पर बस गये थे। उन्हें यात्रा पर इसलिए भेजा था ताकि वहाँ पर भौगोलिक और सांस्कृतिक संतुलन को स्थापित किया जा सके।
कथाओं के अनुसार, महर्षि अगस्त्य के दक्षिण भारत जाने के समय, विंध्य पर्वत उनके सम्मान में अपनी ऊंचाई कम कर देता है। अगस्त्य ने विंध्य पर्वत से वापस अपनी ऊंचाई पर फिर से उठने का आदेश दिया, लेकिन वे कभी वापस नहीं उठे, और इस प्रकार विंध्य पर्वत ने अपनी ऊंचाई कम ही रखी। दक्षिण भारत पहुंचकर, महर्षि अगस्त्य ने वहां के लोगों को वैदिक ज्ञान, योग, और आध्यात्मिक प्रथाओं की शिक्षा दी।
उन्होंने दक्षिण भारतीय समाज और संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। महर्षि अगस्त्य ने दक्षिण भारत में वैदिक परंपराओं, योग, और ध्यान की तकनीकों को लोगों तक पहुँचाया जिससे वहां की आध्यात्मिक और धार्मिक पहचान मजबूत हुई। आज भी उनकी यात्रा और शिक्षाओं का प्रभाव दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों में देखने को मिलता है।
Rishi Agastya : महर्षि अगस्त्य ने अपनी ही पुत्री से शादी क्यों की ?
एक दिन ऋषि अगस्त्य ने अपने तपोबल से सर्वगुण सम्पन्न एक कन्या का निर्माण किया। उन्होंने इस कन्या का नाम लोपामुद्रा रखा। लेकिन जब महर्षि अगस्त्य को यह पता चला कि विदर्भ के राजा के कोई संतान नहीं है और वह संतान की प्राप्ति के लिए तप कर रहा है तो उन्होंने अपनी कन्या राजा को गोद दे दी। जब वह कन्या जवान हुई तो ऋषि अगस्त्य ने राजा से उस कन्या के साथ विवाह करने के लिए हाथ मांग लिया।
राजा इस विवाह के लिए इंकार नहीं कर पाए। क्योंकि राजा को पता था कि अगर वे विवाह से इंकार कर देंगे तो ऋषि अगस्त्य उनको अपने खतरनाक श्राप से भस्म कर देंगे। इसलिए राजा ने ऋषि अगस्त्य को विवाह के लिए इंकार नहीं किया। विवाह के बाद ऋषि अगस्त्य और लोपामुद्रा के दो संतान हुई। जिसमें से एक संतान का नाम भृंगी ऋषि था, जो शिव के परम भक्त थे और वहीं दूसरी संतान का नाम अचुता था।
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