Chhath Puja 2024, सूर्य देव की पूजा का त्योहार है। हिंदू धर्म में सूर्य देव को कृषि का देवता माना जाता है। यह महापर्व चार दिन का होता है और इस दिन छठ माई के लिए व्रत रखा जाता है। इस साल छठ पूजा का महापर्व 7 नवम्बर, दिन गुरुवार को मनाया जायेगा।
Chhath Puja का व्रत करने वाले लगभग 36 घंटे तक निर्जला उपवास करते हैं। यह व्रत खरना के साथ शुरू होता है और उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद खत्म होता है। मुख्य रूप से यह पर्व सूर्य उपासना के लिए किया जाता है, ताकि पूरे परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहे। यह व्रत संतान के सुखद भविष्य के लिए भी किया जाता है।
माना जाता है कि छठ का व्रत करने से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह महापर्व चार दिन का होता है और छठ माई के लिए व्रत रखा जाता है। जिसमें पहला दिन नहाय खाय, दूसरा दिन खरना, तीसरा दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस पर्व पर सूर्य देवता की पूजा की जाती है। वैसे तो यह बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों का प्रमुख पर्व है, लेकिन समय के साथ दूसरे प्रदेश के लोग भी इस महापर्व को मनाने लगे हैं। खासतौर पर दिल्ली और एनसीआर में देश के विभिन्न हिस्से के लोग एक साथ एक ही घाट पर यह पर्व मनाते हैं। तो चलिए आगे जानते हैं इसके पीछे का इतिहास।
राजा प्रियवंद ने की थी पूजा
मान्यता के अनुसार, राजा प्रियवंद निः संतान थे, इसी वजह से वह बहुत परेशान रहते थे। इस समस्या के बारे में उन्होंने महर्षि कश्यप से बात की। उस समय महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया था। इस यज्ञ में बनाई गई खीर को राजा प्रियवंद की पत्नी को खिलाया। उसके बाद उनके यहां एक पुत्र का जन्म हुआ, लेकिन वह पुत्र मृत पैदा हुआ, इसी वियोग में राजा ने भी अपने प्रण त्याग दिए। उसी समय ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना ने राजा प्रियवंद से कहा कि, मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं। इसलिए मेरा नाम षष्ठी है। अगर तुम मेरी पूजा करोगे और लोगों में इसका प्रचार करोगे, तो तुन्हे संतान की प्राप्ति होगी। उसके बाद राजा ने षष्ठी के दिन विधि विधान से पूजा पाठ किया और उसके बाद उनके यहां पुत्र की प्राप्ति हुई।
श्रीराम और माता सीता ने रखा था छठ व्रत
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, लंका के राजा रावण का वध करने के बाद श्रीराम जब पहली बार अयोध्या पहुंचे थे। उस समय भगवान श्रीराम और माता सीता ने रामराज्य की स्थापना के लिए छठ मैया का व्रत रखा था और सूर्य देव की पूजा–अर्चना की थी।
द्रौपदी ने किया था छठ व्रत
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठ व्रत की शुरूआत द्रौपदी ने की थी। द्रौपदी ने पांडवों के अच्छे स्वास्थ्य और बेहतर जीवन के लिए छठी मईया का व्रत रखा था। उसके बाद पांडवों को उनका राज्य वापस मिल गया था।
नहाय–खाय का महत्व
Chhath Puja के पहले दिन नहाय–खाय का विशेष महत्व होता है। इस दिन से ही छठ व्रत की शुरुआत हो जाती है। नहाय–खाय के दिन किए जाने वाले सात्विक भोजन से व्रती को मानसिक और शारीरिक रूप से मज़बूती मिलती है। नहाय–खाय के दिन व्रत करने वाले लोग नदी या तालाब में स्नान करते हैं। इस दिन व्रती लोग आम के दातुन से मुंह साफ़ करते हैं। नहाय–खाय के दिन सात्विक भोजन किया जाता है। इस दिन कद्दू की सब्ज़ी, लौकी चने की दाल, और चावल खाया जाता है। इस दिन व्रती लोग भगवान सूर्य देव और अपने कुलदेवता या कुलदेवी की पूजा करते हैं।
Chhath Puja शुभ मुहूर्त 2024 (Chhath Puja Shubh Muhurat)
Chhath Puja दिवाली के बाद कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला पर्व है। इस साल Chhath Puja 5 नवम्बर से नहाय–खाय के साथ शुरू होगी। इसके बाद छठ पर्व चार दिनों तक चलते हुए खरना, संध्या अर्घ्य, प्रात:कालीन अर्घ्य के साथ 8 नवम्बर को समाप्त हो जाएगा।
वैदिक पंचांग के अनुसार, छठ पूजा 07 नवंबर को देर रात 12 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी और 08 नवंबर को देर रात 12 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगी।
छठ पूजा का महत्व (Chhath Puja ka Mahatva)
यह व्रत काफी कठिन होता है। छठ व्रत में व्रती महिलाएं करीब 36 घंटे तक निर्जला उपवास करती हैं। इसलिए इसे महापर्व छठ कहते हैं। छठ का व्रत संतान की लंबी आयु, परिवार की सुख–समृद्धि के लिए किया जाता है। छठ में भगवान सूर्य देव और छठी मईया की पूजा की जाती है। छठ का व्रत महिलाओं के अलावा पुरुष भी रख सकते हैं।
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