Tamil Nadu vs Centre: ‘हिंदी थोपने’ के आरोप पर संसद में टकराव, डीएमके और भाजपा आमने-सामने

Tamil Nadu vs Centre

Tamil Nadu vs Centre: भारत में भाषा हमेशा से एक संवेदनशील मुद्दा रही है। भाषाई विविधता के कारण कई राज्यों में भाषा को लेकर विवाद होते रहे हैं, लेकिन दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच भाषा को लेकर टकराव सबसे प्रमुख और ऐतिहासिक रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) और इसके तहत प्रस्तावित तीन-भाषा नीति को लेकर यह टकराव एक बार फिर संसद और सड़कों पर दिखाई दिया। यह लेख इस विवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, वर्तमान परिदृश्य और इसके संभावित प्रभावों पर गहराई से प्रकाश डालता है।

Tamil Nadu vs Centre: भाषाई विवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

Tamil Nadu vs Centre: तमिलनाडु में हिंदी के विरोध की जड़ें बहुत पुरानी हैं। 1937 में, जब सी. राजगोपालाचारी ने मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी को अनिवार्य करने का प्रस्ताव दिया, तब तमिलनाडु में व्यापक विरोध हुआ। 1960 के दशक में, जब केंद्र सरकार ने हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में लागू करने की कोशिश की, तब राज्य में बड़े पैमाने पर दंगे हुए।

1965 के हिंदी विरोधी आंदोलन

Tamil Nadu vs Centre: 1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की सरकार ने हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने की कोशिश की, जिससे तमिलनाडु में भारी विरोध हुआ। इस दौरान हिंसा भी भड़की और कई छात्रों ने आत्मदाह तक कर लिया। आंदोलन इतना प्रभावशाली था कि केंद्र सरकार को अपने फैसले से पीछे हटना पड़ा और अंग्रेजी को हिंदी के साथ-साथ सह-आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रखने का निर्णय लेना पड़ा।

डॉविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) पार्टी, जो उस समय विपक्ष में थी, इस आंदोलन का नेतृत्व कर रही थी। इसके बाद DMK सत्ता में आई और तमिलनाडु में हिंदी के खिलाफ नीतियां और मजबूत कर दी गईं।

Tamil Nadu vs Centre: राष्ट्रीय शिक्षा नीति और तीन-भाषा सूत्र का मुद्दा

Tamil Nadu vs Centre: 2020 में लागू की गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में तीन-भाषा सूत्र को अपनाने की सिफारिश की गई। इसके अनुसार, छात्रों को तीन भाषाएं सीखनी होंगी—जिसमें हिंदी, अंग्रेजी और एक अन्य भारतीय भाषा शामिल हो सकती है।

हालांकि, तमिलनाडु की सरकार ने इस नीति का कड़ा विरोध किया और राज्य में दो-भाषा प्रणाली (तमिल और अंग्रेजी) को बनाए रखने की घोषणा की। DMK का मानना है कि यह नीति हिंदी को अनिवार्य रूप से थोपने की कोशिश है और इससे तमिल भाषा और संस्कृति को नुकसान होगा।

Tamil Nadu vs Centre: शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की टिप्पणी और विवाद

Tamil Nadu vs Centre: हाल ही में, संसद में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने DMK पर यह आरोप लगाया कि वह तमिलनाडु के छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है और राजनीति के लिए भाषा की बाधाएं खड़ी कर रही है। उन्होंने कहा:

“वे (DMK) तमिलनाडु के छात्रों का भविष्य बर्बाद कर रहे हैं। उनका एकमात्र काम भाषा की बाधाएं खड़ी करना है। वे राजनीति कर रहे हैं… शरारत कर रहे हैं। वे अलोकतांत्रिक हैं।”

श्री प्रधान की इस टिप्पणी से विवाद बढ़ गया और लोकसभा में हंगामा हुआ। बाद में, संसद की कार्यवाही को 30 मिनट के लिए स्थगित करना पड़ा। DMK सांसदों ने संसद भवन के बाहर विरोध प्रदर्शन किया।

Tamil Nadu vs Centre: तमिलनाडु सरकार और एम.के. स्टालिन की प्रतिक्रिया

Tamil Nadu vs Centre: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने धर्मेंद्र प्रधान की टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा:

“केंद्रीय शिक्षा मंत्री, जो खुद को राजा समझते हैं और अहंकार से बोलते हैं, उन्हें अनुशासित करने की आवश्यकता है!”

स्टालिन ने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार जबरन हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है और इससे तमिल भाषा और संस्कृति को खतरा है। उन्होंने कहा:

“हम आपकी योजना (तीन-भाषा सूत्र) को लागू करने के लिए आगे नहीं आए हैं… और कोई भी हमें मजबूर नहीं कर सकता…”

स्टालिन ने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार तमिलनाडु के शिक्षा क्षेत्र के लिए धन रोकने की धमकी दे रही है। उन्होंने इसे “ब्लैकमेल” करार दिया और कहा कि केंद्र राज्य के करदाताओं के पैसे को रोककर उन्हें दबाव में लाने की कोशिश कर रहा है।

Tamil Nadu vs Centre: भाजपा और डीएमके नेताओं के बीच टकराव

Tamil Nadu vs Centre: इस विवाद में भाजपा और डीएमके के कई नेता कूद पड़े। भाजपा नेता और पूर्व तमिलनाडु राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन ने DMK पर आरोप लगाया कि वह गरीब तबके के छात्रों को तीसरी भाषा सीखने से वंचित कर रही है। उन्होंने कहा:

“जब संपन्न परिवारों के बच्चे तीन भाषाएँ सीख सकते हैं, तो गरीब बच्चों को यह अवसर क्यों नहीं दिया जा रहा है…”

दूसरी ओर, DMK सांसद दयानिधि मारन और कनिमोझी ने भाजपा पर पलटवार किया। उन्होंने कहा:

“DMK कभी भी NEP या तीन-भाषा नीति पर सहमत नहीं हुई… हमने बस इतना कहा कि हमारे छात्रों को तीन भाषाएँ सीखने की ज़रूरत नहीं है, जबकि उत्तर के छात्र केवल एक ही भाषा सीखते हैं। हम हिंदी के खिलाफ नहीं हैं… अगर छात्र सीखना चाहते हैं… तो वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन यह अनिवार्य नहीं होना चाहिए…”

Tamil Nadu vs Centre: ‘हिंदी थोपने’ का आरोप और दक्षिण भारत की राजनीति

Tamil Nadu vs Centre: हिंदी को लेकर विवाद सिर्फ तमिलनाडु तक सीमित नहीं है। दक्षिण भारत के कई राज्यों में हिंदी को लेकर असंतोष रहा है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल में भी हिंदी को अनिवार्य बनाए जाने के खिलाफ विरोध देखा गया है।

तमिलनाडु में डीएमके का यह कहना है कि राज्य ने अंग्रेजी और तमिल के आधार पर अच्छी प्रगति की है और तीसरी भाषा की जरूरत नहीं है। वहीं भाजपा का तर्क है कि हिंदी सीखने से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और यह पूरे भारत में संपर्क भाषा के रूप में फायदेमंद होगी।

Tamil Nadu vs Centre: भविष्य की संभावनाएं और प्रभाव

Tamil Nadu vs Centre: तमिलनाडु की सरकार और भाजपा के बीच यह टकराव भविष्य में और बढ़ सकता है, खासकर 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले। DMK अपने मतदाताओं के बीच हिंदी विरोधी भावनाओं को मजबूत कर सकती है, जबकि भाजपा दक्षिण भारत में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए हिंदी और तीन-भाषा नीति को आगे बढ़ा सकती है।

अगर केंद्र सरकार तीन-भाषा नीति को जबरन लागू करने की कोशिश करती है, तो तमिलनाडु में बड़े विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं। दूसरी ओर, अगर राज्य सरकार NEP को पूरी तरह से खारिज कर देती है, तो केंद्र द्वारा आर्थिक सहायता रोकने जैसी कार्रवाई भी संभव है।

तमिलनाडु बनाम केंद्र सरकार की यह लड़ाई केवल भाषा का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह क्षेत्रीय पहचान, सांस्कृतिक अस्मिता और राजनीतिक समीकरणों का टकराव भी है। हिंदी थोपने का डर तमिलनाडु में गहराई से जड़ें जमा चुका है, और DMK इसे अपने राजनीतिक अस्त्र के रूप में इस्तेमाल कर रही है। दूसरी ओर, भाजपा दक्षिण भारत में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए हिंदी को एकजुटता के माध्यम के रूप में प्रस्तुत कर रही है।

भविष्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या तमिलनाडु अपने दो-भाषा मॉडल पर कायम रहता है, या केंद्र सरकार इसे बदलने के लिए कोई नया कदम उठाती है।

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