Badlapur Case: Bombay HC ने महाराष्ट्र के बदलापुर में एक स्कूल में दो चार साल की बच्चियों के यौन उत्पीड़न मामले पर स्वतः संज्ञान लेते हुए पुलिस की केस handling पर गंभीर असंतोष व्यक्त किया है।
Bombay HC ने अखबार में छपी खबरों के आधार पर Badlapur Case का स्वतः संज्ञान लिया है। कोर्ट ने पुलिस और स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन पर बेहद कड़ी टिप्पणियां करते हुए इस मामले में पुलिस तथा स्कूल अधिकारियों की बखिया उधेड़ दी है।
Bombay HC की कार्यवाही और टिप्पणियाँ
13 अगस्त को, चार साल की दो छोटी बच्चियों का यौन उत्पीड़न उनके बदलापुर स्कूल के 23 वर्षीय कर्मचारी अक्षय शिंदे ने किया। Badlapur Case मीडिया में आया और इस पर चारो तरफ से बेहद गंभीर प्रतिक्रियाएं आयी। अब कोर्ट ने ममले का स्वतः संज्ञान लिया। जस्टिस रेवती मोहिते डेर और जस्टिस प्रथिवीराज चव्हाण ने पुलिस की कार्रवाई को लेकर अपनी निराशा और आक्रोश व्यक्त किया। “हमें यह देखकर आश्चर्य होता है कि बदलापुर पुलिस ने दूसरी पीड़िता की धारा 161 और 164 के तहत बयान दर्ज करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया,” बेंच ने कहा।
न्यायाधीशों ने एफआईआर दर्ज करने में देरी पर भी सवाल उठाया, यह कहते हुए कि यह लोगों को इस तरह की घटनाओं की रिपोर्ट करने से हतोत्साहित करता है: “मामलों में पुलिस को तुरंत एफआईआर दर्ज करनी चाहिए। लेकिन परिवार को घंटों इंतजार करवाया गया। यह जनता को रिपोर्टिंग से हतोत्साहित करता है।”
Bombay HC ने यह भी स्पष्ट किया कि कानून लागू करने वालो पर से जनता का विश्वास नहीं खोना चाहिए: “यह जरुरी है की लोगों का सार्वजनिक व्यवस्था पर से विश्वास न उठे। आपको पता होना चाहिए कि महाराष्ट्र पुलिस का आदर्श वाक्य सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय है। इसका मतलब है अच्छाइयों की रक्षा करना और बुराइयों को नियंत्रित करना। कृपया इसे याद रखें… लोगों को एफआईआर दर्ज कराने के लिए सड़कों पर नहीं आना चाहिए।”
बेंच ने एफआईआर में दूसरी पीड़िता का उल्लेख न होने और उसके बयान दर्ज करने में देरी पर भी आपत्ति जताई। “पुलिस इसे इतनी हल्के में कैसे ले सकती है,” कोर्ट ने पूछा। यह भी नोट किया गया कि पीड़िता के पिता का बयान केवल तब दर्ज किया गया जब हाई कोर्ट ने स्वेच्छा से मामला शुरू किया। कोर्ट के गुस्से का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है की कोर्ट ने AG बीरेंद्र सराफ से कहा: “AG आपको बदलापुर पुलिस द्वारा किये गए काम पर अभी बहुत सारे जवाब देने हैं।”
स्कूल अधिकारियों की आलोचना
Bombay HC ने स्कूल अधिकारियों की निष्क्रियता पर भी नाखुशी व्यक्त की। “स्कूल अधिकारियों ने अपराध की रिपोर्टिंग में लापरवाही की है,” बेंच ने कहा। उन्होंने पूछा कि स्कूल को केस में क्यों नहीं शामिल किया गया, जबकि POCSO अधिनियम की आवश्यकताएँ हैं। “अगर स्कूल सुरक्षित नहीं हैं… तो ‘शिक्षा का अधिकार’ की बात करने का क्या मतलब है?” कोर्ट ने बच्चों के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने में स्कूल की विफलता पर टिपण्णी की।
एडवोकेट जनरल बिरेंद्र सराफ ने SIT के गठन की स्वीकृति दी, लेकिन कोर्ट ने देरी को लेकर असंतोष व्यक्त किया: “लेकिन स्कूल के खिलाफ मामला अब तक क्यों नहीं दर्ज किया गया… एफआईआर दर्ज होने के तुरंत बाद स्कूल अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया जाना चाहिए था।”
Badlapur Case: सरकार और विपक्ष की प्रतिक्रियाएँ
Bombay HC की टिप्पणियों के जवाब में, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने त्वरित कार्रवाई का आश्वासन दिया है। एक विशेष जांच टीम (SIT), जो वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अर्चना सिंह की अध्यक्षता में है, को मामले की पूरी समीक्षा करने के लिए कहा गया है। सरकार ने सभी स्कूलों को एक महीने के भीतर सीसीटीवी कैमरे स्थापित करने का निर्देश भी दिया है। विपक्षी पार्टियाँ, जिसमें कांग्रेस, शिवसेना (UBT), और NCP (SP) शामिल हैं, ने 24 अगस्त को महाराष्ट्र बंद की घोषणा की है, ताकि इस मामले के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया पर विरोध जताया जा सके। उन्होंने बीजेपी-नेतृत्व वाली सरकार की सुरक्षा चिंताओं को ठीक से न Address करने के लिए आलोचना की है।
Badlapur Case पृष्ठभूमि
Badlapur Case तब सामने आया जब एक पीड़िता ने दर्द की शिकायत की, जिसके बाद उसके माता-पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज की। एफआईआर 11 घंटे बाद दर्ज की गई, और अक्षय शिंदे को 17 अगस्त को गिरफ्तार किया गया। स्कूल और अधिकारियों द्वारा की गई देरी और प्रक्रियात्मक गलतियाँ जनता की नाराजगी और हिंसक प्रदर्शनों की वजह बनीं।
महाराष्ट्र राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने स्कूल की लापरवाही और शौचालयों में महिला सहायक की कमी की निंदा की है। आयोग की अध्यक्ष, सुसिबेन शाह ने सख्त सुरक्षा उपायों और स्कूल के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की जरूरत को emphasized किया है। Bombay HC की बदलापुर यौन उत्पीड़न मामले में दखल ने पुलिस और स्कूल अधिकारियों के काम में महत्वपूर्ण खामियों को उजागर किया है। कोर्ट की कड़ी टिप्पणियाँ और निर्देशों से स्पष्ट है कि प्रक्रियात्मक सुधारों और बच्चों की सुरक्षा के बेहतर उपायों की तत्काल आवश्यकता है।
इन घटनाओ के कारण सरकार और संबंधित अधिकारियों पर दबाव है कि वे इन मुद्दों को देखें और पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करें। अगली सुनवाई मंगलवार को निर्धारित की गई है, और कोर्ट ने संबंधित पक्षों से विस्तृत रिपोर्ट और स्पष्टीकरण की मांग की है।
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