Zoho CEO Shridhar Vembu: हाल ही में Zoho CEO Shridhar Vembu ने बेंगलुरु को अपना “घर” बनाने वाले लोगों को कन्नड़ सीखने की सलाह दी, और स्थानीय भाषा तथा संस्कृति का सम्मान करने के महत्व पर जोर दिया। यह बयान पत्रकार चंद्रा आर. श्रीकांत के एक पोस्ट के संदर्भ में आया, जिसमें उन्होंने बेंगलुरु में रहने वालों से कन्नड़ सीखने की अपील की थी, विशेष रूप से उन लोगों से जो वर्षों से यहां रह रहे हैं।
Zoho CEO Shridhar Vembu की प्रतिक्रिया
यह मामला उस समय सामने आया जब Zoho CEO Shridhar Vembu ने एक पोस्ट साझा किया, जिसमें दो लोग “हिंदी राष्ट्रीय भाषा” वाले टी-शर्ट पहने हुए थे। उन्होंने इस पोस्ट पर आलोचना की, यह बताते हुए कि बेंगलुरु में कई लोग वर्षों से रहते हुए भी कन्नड़ नहीं सीखते, जो स्थानीय संस्कृति का अपमान है। श्रीकांत, जो खुद कन्नड़ नहीं बोलतीं, ने कहा कि उन्होंने कन्नड़ सीखने में काफी मेहनत की है और उन्होंने महसूस किया है कि यहां के लोग उनके छोटे प्रयासों की सराहना करते हैं।
इस पर Zoho CEO Shridhar Vembu ने सहमति जताते हुए कहा कि बेंगलुरु को अपना घर बनाने वाले लोगों को कन्नड़ सीखना चाहिए, और उनके बच्चों को भी यह भाषा सीखनी चाहिए। उन्होंने इसे “असम्मानजनक” बताया कि इतने वर्षों तक बेंगलुरु में रहने के बावजूद कोई कन्नड़ नहीं सीखता। वेम्बू ने यह भी कहा कि वह अपने चेन्नई स्थित कर्मचारियों से भी तमिल सीखने का आग्रह करते हैं, ताकि वे स्थानीय समुदाय में समरसता से रह सकें और स्थानीय संस्कृति का सम्मान कर सकें।
बहस: क्या कन्नड़ सीखना अनिवार्य होना चाहिए?
Zoho CEO Shridhar Vembu के इस बयान ने सोशल मीडिया पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कीं। कुछ उपयोगकर्ताओं ने उनके विचारों का समर्थन किया, यह कहते हुए कि स्थानीय भाषा सीखना समुदाय से जुड़ने और संस्कृति को समझने में मदद करता है। एक उपयोगकर्ता ने कहा, “स्थानीय भाषा सीखना कई तरीकों से उपयोगी होता है और हमें इसे सीखने की कोशिश करनी चाहिए बजाय इसके कि हम बहाने ढूंढें।”
हालांकि, अन्य लोगों ने इस अपेक्षा की व्यावहारिकता पर सवाल उठाया, खासकर जब भारतीय मेट्रो शहरों में बहुभाषी वातावरण हो। एक उपयोगकर्ता ने मुंबई का उदाहरण दिया, जहां कई कन्नड़ भाषी लोग मराठी नहीं बोलते हैं। दूसरे ने यह भी कहा कि बेंगलुरु जैसी वैश्विक तकनीकी हब में अंग्रेजी व्यापार और सामाजिक मामलों की प्रमुख भाषा बन गई है, जिससे कन्नड़ सीखना उतना जरूरी नहीं लगता।
बेंगलुरु की भाषाई स्थिति
बेंगलुरु, जो पहले एक शांतिपूर्ण शहर था, अब एक तेजी से बढ़ता हुआ तकनीकी केंद्र बन गया है। यह शहर अब पूरे भारत और दुनिया भर से पेशेवरों को आकर्षित करता है, जिनमें से अधिकांश अंग्रेजी और हिंदी में संवाद करते हैं। इसके बावजूद, कन्नड़ में स्थानीय गर्व बरकरार है, और कई स्थानीय लोग इसे अपनी पहचान का अहम हिस्सा मानते हैं। उनके लिए, बाहरी लोगों से कन्नड़ सीखने की अपेक्षा करना संस्कृति और धरोहर के संरक्षण का तरीका है।
हालांकि, बेंगलुरु की बहुभाषी संस्कृति इस मुद्दे को और जटिल बना देती है। अंग्रेजी, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं का व्यापक उपयोग होने के कारण कई लोग कन्नड़ सीखने की आवश्यकता नहीं महसूस करते, क्योंकि वे आसानी से इन भाषाओं में संवाद कर सकते हैं।
भाषा और पहचान
भारत में भाषा केवल संचार का एक साधन नहीं है, बल्कि यह एक क्षेत्र की पहचान और संस्कृति को दर्शाता है। कन्नड़ सीखने के सवाल पर विभिन्न दृष्टिकोण सामने आते हैं। कुछ लोग इसे स्थानीय समुदाय से जुड़ने और संस्कृति का सम्मान करने का तरीका मानते हैं, जबकि दूसरों का मानना है कि यह एक अनावश्यक अपेक्षा है, विशेष रूप से जब शहरी क्षेत्र में एक से अधिक भाषाएं बोलने की आदत हो।
Zoho CEO Shridhar Vembu का दृष्टिकोण
Zoho CEO Shridhar Vembu, जिनकी संपत्ति Forbes के अनुसार $5.8 बिलियन है, ने हमेशा स्थानीय संस्कृति और मूल्यों के सम्मान की बात की है। उनका मानना है कि स्थानीय भाषा सीखना केवल संवाद का तरीका नहीं है, बल्कि यह स्थानीय लोगों और संस्कृति के प्रति सम्मान दिखाने का एक तरीका है।
Zoho CEO Shridhar Vembu के कन्नड़ सीखने के समर्थन में दिए गए बयान ने बेंगलुरु में भाषा और संस्कृति के महत्व को लेकर एक व्यापक बहस को जन्म दिया है। बेंगलुरु जैसे बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी शहर में जहां अंग्रेजी का प्रयोग सामान्य हो चुका है, कन्नड़ सीखने की आवश्यकता को लेकर दृष्टिकोण भिन्न हैं। फिर भी, यह बातचीत इस बात को उजागर करती है कि भाषा सिर्फ एक संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह उस स्थान और समाज से जुड़ने का एक महत्वपूर्ण तरीका है, जहां आप रहते हैं।
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