Delhi-NCR Pollution: दिल्ली में वायु गुणवत्ता लगातार खराब होती जा रही है। 17 नवंबर को राजधानी का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 441 दर्ज किया गया, जिससे यह देश का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर बन गया।
इस बीच, सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) की एक नई रिपोर्ट ने चौंकाने वाला खुलासा किया है कि दिल्ली-एनसीआर के Thermal Power Plants पराली जलाने की तुलना में 16 गुना अधिक प्रदूषण कर रहे हैं।
Thermal Power Plants से सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) उत्सर्जन का खतरा
रिपोर्ट के अनुसार, जून 2022 से मई 2023 तक दिल्ली-एनसीआर में कोयले से चलने वाले Thermal Power Plants ने 281 किलोटन SO₂ उत्सर्जित किया। यह मात्रा पराली जलाने से हुए 17.8 किलोटन उत्सर्जन से 16 गुना अधिक है। CREA ने बताया कि थर्मल पावर प्लांट्स द्वारा सल्फर डाइऑक्साइड का उत्सर्जन सालभर होता है, जबकि पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण मौसमी है।
भारत वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा SO₂ उत्सर्जक है, जो वैश्विक मानव-निर्मित SO₂ उत्सर्जन का 20% से अधिक योगदान देता है। वर्ष 2023 में भारत के बिजली उत्पादन क्षेत्र से 6,807 किलोटन SO₂ उत्सर्जन दर्ज किया गया, जो तुर्की और इंडोनेशिया जैसे देशों से कहीं अधिक है।
Delhi-NCR Pollution नियंत्रण में देरी और लापरवाही
केंद्र सरकार ने 2015 में Thermal Power Plants में फ्लू गैस डीसल्फराइजेशन (FGD) तकनीक लागू करने के लिए मानक निर्धारित किए थे। यह तकनीक SO₂ उत्सर्जन को 64% तक कम कर सकती है। NCR के 12 कोयला-आधारित थर्मल पावर प्लांट्स में FGD तकनीक लागू होने पर उत्सर्जन 281 किलोटन से घटकर 93 किलोटन हो सकता है। हालांकि, अब तक केवल दो प्लांट्स—महात्मा गांधी टीपीएस (हरियाणा) और दादरी टीपीपी (उत्तर प्रदेश)—ने FGD तकनीक स्थापित की है।
FGD लागू करने की समयसीमा पहले 2017 तय की गई थी, लेकिन यह कई बार बढ़ाई गई। वर्तमान में चार प्लांट्स के लिए यह सीमा दिसंबर 2024 और बाकी के लिए दिसंबर 2026 है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस देरी से न केवल वायु गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, बल्कि स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ रहा है।
स्टडी में चौंकाने वाले आंकड़े
CREA के अनुसार, थर्मल पावर प्लांट्स के 96% प्रदूषक SO₂ से उत्पन्न होते हैं, जो वायुमंडल में सल्फेट कणों में बदल जाते हैं। ये कण PM2.5 के प्रमुख घटक हैं, जो फेफड़ों और हृदय प्रणाली पर गंभीर प्रभाव डालते हैं।
आईआईटी दिल्ली की एक अन्य स्टडी बताती है कि FGD तकनीक 60-80 किमी के दायरे में SO₂ की सांद्रता को 55% तक और 100 किमी तक सल्फेट एरोसोल की मात्रा को 30% तक घटा सकती है।
अन्य प्रदूषण स्रोतों का योगदान
दिल्ली में प्रदूषण के अन्य स्रोतों में वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन का हिस्सा 15.8% और पराली जलाने का 25% रहा। हालांकि, थर्मल पावर प्लांट्स का योगदान दीर्घकालिक और बड़ा है।
किसानों पर सख्ती, प्लांट्स को छूट
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि पराली जलाने पर किसानों को कड़ी सजा दी जाती है, जबकि थर्मल पावर प्लांट्स को बार-बार छूट दी जाती है। विशेषज्ञों ने इसे नीति में असंतुलन बताया है।
कड़े कदमों की जरूरत
CREA के विश्लेषक मनोज कुमार का कहना है, “FGD तकनीक के स्वास्थ्य और आर्थिक लाभ लागत से कहीं अधिक हैं। इनका तेज़ी से लागू होना जरूरी है।” उन्होंने यह भी कहा कि पारदर्शिता और समयबद्ध कार्रवाई से प्रदूषण नियंत्रण में बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।
Delhi-NCR Pollution की समस्या गंभीर है। थर्मल पावर प्लांट्स को स्वच्छ ऊर्जा विकल्प अपनाने और FGD तकनीक लागू करने की दिशा में तुरंत कदम उठाने की जरूरत है। जब तक इन प्लांट्स पर सख्त नियंत्रण नहीं होगा, तब तक हवा की गुणवत्ता में सुधार असंभव है।
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