दिल्ली के उपराज्य पाल ने अरुंधति रॉय के खिलाफ UAPA के तहत मुकदमा चला ने की मंजूरी दी

UAPA

दिल्ली के उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना ने शुक्रवार को 2010 में कश्मीरी अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले बयानों के लिए उपन्यासकार अरुंधति रॉय के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दी। राज निवास के अधिकारियों के अनुसार, यह मंजूरी अवैध गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 13 के तहत दी गई है। पिछले साल, उपराज्यपाल ने भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत भी मुकदमा चलाने की मंजूरी दी थी।

उपराज्यपाल ने केंद्रीय कश्मीर विश्वविद्यालय के पूर्व अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रोफेसर शेख शोएब हुसैन के खिलाफ भी UAPA के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी दी है। यह मंजूरी 2010 में नई दिल्ली के एलटीजी ऑडिटोरियम में ‘आज़ादी – द ओनली वे’ के बैनर तले आयोजित एक सम्मेलन में उनके कथित बयानों के लिए दी गई है।

घटना और अभियोग

सामाजिक कार्यकर्ता सुशील पंडित द्वारा 2010 में दर्ज की गई शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि अरुंधति रॉय और शोएब हुसैन ने 21 अक्टूबर 2010 को कॉपरनिकस मार्ग पर लिटिल थियेटर ग्रुप (एलटीजी) ऑडिटोरियम में आयोजित ‘आज़ादी – द ओनली वे’ सम्मेलन में उकसाने वाले भाषण दिए थे। शिकायत में आरोप लगाया गया था कि उन्होंने कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं माना और भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा जबरन कब्जा करने की बात कही।

कानूनी प्रक्रिया और मंजूरी

अक्टूबर 2023 में, उपराज्यपाल ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 196 के तहत अभियोग चलाने की मंजूरी दी थी। इसमें विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और सार्वजनिक उपद्रव पैदा करने के अपराध शामिल हैं। दिल्ली पुलिस ने पहले IPC की धारा 153A, 153B, 504, 505 और UAPA की धारा 13 के तहत अभियोग चलाने की मांग की थी, लेकिन उपराज्यपाल ने अक्टूबर में केवल IPC की धाराओं के तहत ही मंजूरी दी थी।

UAPA की धारा 13 गैरकानूनी गतिविधियों की वकालत, उकसाने या समर्थन करने के लिए सजा का प्रावधान करती है, जिसमें सात साल तक की कैद हो सकती है। IPC की धारा 153A विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने से संबंधित है, जबकि धारा 153B राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक दावे करने से संबंधित है। धारा 505 सार्वजनिक शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करने से संबंधित है।

विवाद और प्रतिक्रिया

अरुंधति रॉय, जिन्होंने 1997 में ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ के लिए बुकर पुरस्कार जीता था, भारत की सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक हैं। लेकिन उनके सक्रियता और मोदी सरकार के प्रति उनकी आलोचना ने उन्हें भारत में एक विवादास्पद व्यक्तित्व बना दिया है। उनकी आलोचना खासकर अल्पसंख्यकों को लक्षित करने वाले कानूनों पर केंद्रित रही है।

राजनीतिक प्रतिक्रिया

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट) ने इस निर्णय की निंदा करते हुए कहा, “दिल्ली एलजी द्वारा अरुंधति रॉय के खिलाफ UAPA के तहत अभियोग चलाने की मंजूरी निंदनीय है। यह 14 साल पुराने भाषण के लिए किया गया है, जो केवल तानाशाही मानसिकता का उदाहरण है।”

कानूनी और सामाजिक प्रभाव

UAPA, जिसे अक्सर आतंकवाद-रोधी कानून कहा जाता है, को आलोचकों द्वारा असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक बताया गया है। मोदी सरकार पर अक्सर इस कानून का उपयोग सरकार के आलोचकों को चुप कराने के लिए करने का आरोप लगाया गया है, जिसमें वकील, कार्यकर्ता, पत्रकार, और कश्मीरी नागरिक शामिल हैं।

आगे की कार्रवाई

इस मामले में अभियोग चलाने की मंजूरी मिलने के बाद, अरुंधति रॉय और शेख शोएब हुसैन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी। यह देखना बाकी है कि अदालतें इस मामले को कैसे संभालती हैं और इसका क्या परिणाम निकलता है।

इस मंजूरी ने भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकारों के संरक्षण पर एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म दिया है। जैसे-जैसे यह मामला आगे बढ़ेगा, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारतीय न्याय प्रणाली कैसे इन जटिल मुद्दों का समाधान करती है।

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