Narayan Surve के घर चोरी कर पछताया चोर

Naraayan Surve

Narayan Surve के घर चोरी: एक चोर, अज्ञात चोर, एक घर में चोरी करने घुसा।  चोरी की लेकिन क्योंकि घर में रहने वाले लोग बाहर गए हुए थे तो अगले दिन फिर वापस आया और कुछ सामान घर से ले जाने के लिए। लेकिन इस बार जो हुआ वो सिर्फ फिल्मो में होता है। चोर ने वहां रखा एक पोर्ट्रेट देखा और सारी चीज़ीं न सिर्फ वापस रख दी बल्कि माफ़ी का मैसेज भी छोड़ा। 

घटना का विवरण

यह एक काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि सत्य घटना हैमहाराष्ट्र में रायगढ़ जिले में नेरल नाम का एक क़स्बा है। वहां एक घर में सुजाता और गणेश घरे रहते हैं।  पिछले कुछ दिनों से दोनों अपने बेटे के पास गए हुए थे।  घर को बंद देख एक चोर उनके घर घुसा और उसने काफी कीमती सामन वहां से चुराया। चोरी के सामने में एक LED टीवी भी था। 

क्योंकि घर काफी दिनों से बंद था तो चोर दोबारा आया कुछ और सामन चुराने।  इस बार चोर ने दूसरे कमरे खंगाले।  इनमे से एक कमरे में उसने देखा नारायण सुर्वे का पोर्ट्रेट। और साथ में उनको मिले सम्मान भी वहां रखे थे। चोर को एहसास हुआ की वो घर किसी और का नहीं बल्कि जाने माने मराठी कवि Narayan Surve का था। Narayan Surve का देहांत 16 अगस्त 2010 को हो चूका है।  अपनी मृत्यु के समय सुर्वे 84 साल के थे।

Narayan Surve ने अपने जीवनकल में जो कविताएं लिखी उसमें मिडिल क्लास और लेबर क्लास की पीड़ाओं का वर्णन है।  खुद नारायण सुर्वे फुटपाथ से उठ कर एक बेहद सम्मानित और जाने माने कवि बने। चोर जो की Narayan Surve के बारे में जानते था पछताया और उसने सारा सामन वापस ला कर रख दिया।  साथ ही उसने घर के मालिकों के लिए एक माफीनामा छोड़ा जिसमे नारायण सुर्वे जैसे महान इंसान के घर चोरी करने पर चोर ने माफ़ी मांगी थी। 

कार्यवाही

कुछ दिन बाद जब गीता और गणेश घर आये तो उन्होंने घर की हालत देख कर एवं नोट पढ़ कर पुलिस को सूचना दी।  पुलिस अब जांच कर रही है और चोर का पता लगाने की कोशिस कर रही है। LED टीवी एवं अन्य सामने से फिंगर प्रिंट्स उठाये गए हैं।  पुलिस का मानना है की चोर कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति है जिसको नारायण सुर्वे की रचनाओं के बारे में पता था और वह उनका प्रशंसक भी है।

Narayan Surve रचनाएं:

Naraayan Surve रचनाएं:

जीना मुश्किल हो गया है फिर भी जीना है

सहने जैसा अभी बहुत कुछ है जिसे सहना है

घड़ीभर का है अंधेरा फिर तो भोर ही भोर है

फिर आज ही सारे हथियार डालकर क्या लौटना चाहिए ?

माफ़ कीजिए यह काम आप मुझको मत ही बताइए !

यह अनुवादित पंक्तिया नारायण सुर्वे की कविता माफ़ कीजिये से ली गयी है। इन पंक्तियों से अंदाजा लगाया जा सकता है की कैसे नारायण सुर्वे संघर्षील लोगो की आवाज़ बने।  और आज भी क्यों एक चोर जो की पढ़ा लिखा है लेकिन शायद हालातो के चलते चोरी कर रहा है, सारा सामन वापस दे कर चला जाता है।   

सिर्फ सुर्वे की रचनाये ही नहीं बल्कि खुद सुर्वे का जीवन किसी को भी इंस्पॉयर कर सकता है।  सुर्वे के माता पिता का कुछ नहीं पता था।  उनकी आँखें फुटपाथ पर खुली। स्कूल कॉलेज जाने का मौका नहीं मिला।खुद लिखना पढ़ना सीखा और फिर माझी विद्यापीठ जैसी रचना की।

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